नई दिल्लीः- दिपावली भारत देश के सबसे बड़े त्योहारों में से एक है। दीपोत्सव पर पूरे देश में उत्साह देखने को मिलता है। हर गली हर घर रंगीन लाइटों और दिए से जगमगा रहता है। हिंदू धर्म में भगवान श्री रामचंद्र के 14 वर्ष के वनवास से लौटने की खुशी में दीपोत्सव मनाया जाता है, लेकिन क्या आपको पता है दीपावली सिख लोग भी बड़े धूमधाम से मनाते हैं आई आपको बताते हैं सिखों की दिवाली मनाने का इतिहास
गुरु हरगोबिन्द सिंह जी की ग्वालियर क़िले से रिहाई
सिख पंथ के छठवें गुरु श्री गुरु हरगोबिन्द सिंह जी ने सिखों को लड़ने की पहली बार अनुमति दी अपने शिक्षा गुरू बाबा बुढ्ढा सिंह जी के नेतृत्व में उन्होंने पहली सिख सेना बनाई और तरह तरह के हथियारों का सिख समाज में प्रचलन किया। सिखों की चढ़ती कला को देखकर मुगलों को भय हुआ जिसके योजनाबद्ध तरीके से सिखों को दबाने की एक साज़िश रची गई।
गुरु हरगोबिन्द सिंह को क़ैद व 52 राजा
जहांगीर ने गुरू बाबा हरगोबिन्द सिंह जी को चिट्ठी लिखकर उनके पिता की हत्या को अपनी ग़लती स्वीकार कर माफी मांगी और श्री गुरु हरगोबिन्द जी को दिल्ली बुलाया और धोखे से उन्हें दिल्ली से ग्वालियर ले जाया गया। मुगल काल में ग्वालियर के किले को सबसे बड़े जेल के तौर पर इस्तेमाल किया जाता था। इसी ग्वालियर किले में मुगलों द्वारा पावर विभिन्न हिंदू राजाओं को कैद करके रखा गया था।
बाहर निकलना नामुमकिन था। कैद सभी 52 राजाओं ने बाहर निकालने की सभी उम्मीदों को छोड़ दिया था तभी वहां गुरु हरगोबिंद सिंह को भी लाया गया जहां सभी राजा उदास और हताश थे वही इस कैद में गुरु हरगोबिंद साहब उत्साहित एवं भजन में निमग्न रहने लगे। जिनसे जुड़कर सभी 52 राजाओं में हिम्मत जागी।
जहांगीर की माफी व बंदी छोड़ दिवस
गुरू सहाब को कैद करने के कुछ दिनों के बाद से धीरे-धीरे जहांगीर की तबीयत खराब रहने लगी देश के तमाम बड़े वेद हुए आयुर्वेदाचार्य की लगभग सभी दवाइयां बेसर हो गई कोई भी रहता ना मिलता देख जहांगीर ने अपने गुरु सूफी संत साई मियां मीर को बुलाया और अपना हाल सुनाया जिसे सुनकर संत साई मियां मीर ने जहांगीर को गुरु साहब से माफी मांगने व उन्हें कैद से आजाद करने की बात कही। संत साईं मियां मीर ने जहांगीर को बताया कि गुरु साहब रूहानी शक्तियों के मालिक है उनको कैद करना जहांगीर को मौत के दरवाजे तक पहुंचा सकता है।
जहांगीर ने तुरंत ही जेल में एक चिट्ठी भेजी जिसमें उसने गुस्सा आपसे माफी मांगी वह उन्हें रिहा करने का आदेश दिया। रिहाई आदेश पर भी गुरु साहब ने एक चिट्ठी जागीर को लिखी और उससे कहा कि मैं यहां से अकेला बाहर नहीं जाऊंगा मैं यहां से बंद सभी राजाओं को साथ लेकर जाऊंगा।
पहले तो जहांगीर ने आनाकानी करी लेकिन उसके बाद उसने एक शर्त रखी उसने कहा कि जितने भी राजा आपके कपड़े के कोने को पड़कर जेल से बाहर निकल जाएंगे केवल उन्हीं को रिहा किया जाएगा। इस खबर के पता लगने के बाद गुरु साहब ने जेलर और जेल के अन्य कर्मचारियों की सहायता से 52 कलियों की एक स्पेशल पोशाक बनवाई जिसे पड़कर सभी 52 राजा जेल से मुक्त हुए।
अमृतसर पहुंचे गुरु तो जगमग हुआ था शहर
ग्वालियर कारागार से निकलने के बाद जिस दिन गुरु हरगोबिंद अमृतसर पहुंचे, लोगों ने पूरे शहर को हजारों मोमबत्तियों, दीयों और लैंप से रोशन किया। ऐसा पहले कभी नहीं किया गया था। संयोग से जिस दिन गुरु अमृतसर पहुंचे, उस दिन भी अमावस्या थी। उस दिन गुरुद्वारागोल्डन टेम्पल, अमृतसर में भी धूमधाम से रोशनी की गई थी।
बस तभी से गुरु की वापसी के दिन सिख धर्म के लोग बंदी छोड़ दिवस मनाते हैं। ग्वालियर में जिस स्थान पर गुरु हरगोबिंद जी को बंदी रखा गया था, वहां आज गुरुद्वारा दाता बंदी छोड़ साहिब स्थित है। इसमें भी बंदी छोड़ दिवस पर भव्य आयोजन होता है।