नई दिल्लीः- देश ही नहीं बल्कि सारी दुनिया नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के शौर्य एवं वीरता से भलि भांति परिचित हैं। ब्रिटिश भारत को गुलामी की जंजीरों से मुक्त करने में सशस्त्र क्रांतिकारियों के रूप में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, मोहन सिंह , रासबिहारी बोस जैसे क्रांतिकारियों का नाम अग्रणी तौर पर जाना जाता है। आज ही के दिन 21 अक्टूबर को नेताजी ने आजाद हिन्द फौज की स्थापना की जिसने अंडमान निकोबार में तिरंगा लहराकर उस इलाके को पहले ही आजाद घोषित कर दिया था। आइए आज स्थापना दिवस पर जानते हैं आजाद हिन्द फौज से जुड़े कुछ रोचक तथ्यों के बारे में जिन्हें जानकर आपको हैरानी होगी:-
अंग्रेजी हुकूमत आजाद हिन्द फौज और नेताजी सुभाष चन्द्र बोस से बहुत डरती थी। इसका कारण जापान की सपोर्ट और आजाद हिन्द फौज में शामिल 85 हजार सशस्त्र सैनिक थें।
आजाद हिंद फौज का गठन पहली बार राजा महेंद्र प्रताप सिंह, रास बिहारी बोस एवं निरंजन सिंह गिल ने 29 अक्तूबर 1915 को किया, जिसे उस वक्त आजाद हिंद सरकार की सेना कहा गया। इसे आजाद हिंद फौज का नाम तब मिला जब नेताजी सुभाष चंद्र बोस को इस सेना का सर्वोच्च कमांडर नियुक्त किया गया।
आजाद हिंदी फौज से जुड़े 2300 लोगों को एक साथ पश्चिम बंगाल के नीलगंज इलाके में ब्रिटिश आर्मी ने मशीन गन लगाकर भून दिया था। यह दुस्साहसिक घटना 25 सितंबर 1945 को हुई थी और इसकी चर्चा बहुत कम होती है।
आजाद हिंद फौज के सिपाहियों से अंग्रेज इतने गुस्से में थे कि उन पर खुले में मुकदमा चलाने का फैसला कर लिया। दिल्ली के लाल किले में इन्हें बंदी बनाकर रखा गया। यहीं इन पर मुकदमा चलाने का फैसला हुआ था।
उस समय फौज में सभी जाति-धर्म के लोग थे। अंग्रेज जब हिन्दू-मुस्लिम कहकर अलग-अलग चाय परोसते तो आजाद हिंद फौज के दीवाने उसे एक में मिलाकर बांटकर पी लेते थे।
नेताजी ने आजाद हिन्द फौज में उस जमाने में महिला यूनिट खड़ी कर दी थी जब लोग महिलाओं को घर से निकलने तक नहीं देते थे। उन्होंने महिलाओं को इस तरह की ट्रेनिंग दी कि उन्हें मेडिकल और जासूसी में महारत हासिल थीं। नीरा आर्या और सरस्वती राजामणि जैसे जासूसों का नाम गर्व से लिया जाता है।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस के पास अपना बैंक था, मुद्रा थी और डाक टिकट था। उनके पास 85 हजार सशस्त्र सैनिक थे। अपना रेडियो स्टेशन था।