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नई दिल्ली: सिख समुदाय विश्व भर में दो महान गुरुओं—गुरु नानक देव जी और गुरु अर्जुन देव जी—की जयंती को प्रकाश पर्व के रूप में उत्साहपूर्वक मना रहा है। यह दिन सिख धर्म के लिए विशेष महत्व रखता है, क्योंकि गुरु नानक देव जी ने सिख धर्म की स्थापना की और गुरु अर्जुन देव जी ने इसे और सुदृढ़ किया। दोनों गुरुओं ने अपने उपदेशों और बलिदान से मानवता को प्रेम, समानता और सत्य का मार्ग दिखाया।
गुरु नानक देव जी: सिख धर्म के संस्थापक
गुरु नानक देव जी का जन्म 15 अप्रैल 1469 को तलवंडी (वर्तमान में ननकाना साहिब, पाकिस्तान) में एक हिंदू खत्री परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम मेहता कालू और माता का नाम तृप्ता देवी था। बचपन से ही गुरु नानक जी में आध्यात्मिक प्रवृत्ति थी। उन्होंने सामाजिक कुरीतियों जैसे जात-पात, अंधविश्वास और असमानता का कड़ा विरोध किया। गुरु नानक जी ने ‘इक ओंकार’ का संदेश दिया, जिसका अर्थ है ‘एक ईश्वर’, जो सभी में समाया है और सत्य का प्रतीक है।
उन्होंने अपने जीवन में चार प्रमुख यात्राएं, जिन्हें ‘उदासियाँ’ कहा जाता है, कीं। इन यात्राओं में उन्होंने भारत, अफगानिस्तान, ईरान, अरब और अन्य क्षेत्रों का भ्रमण किया, लोगों को एकता, प्रेम और भक्ति का उपदेश दिया। उनकी शिक्षाओं का मूल मंत्र था—’नाम जपो, किरत करो, वंड छको’, अर्थात् ईश्वर का नाम जपो, मेहनत से कमाओ और दूसरों के साथ बांटो। गुरु नानक जी ने लंगर प्रथा की शुरुआत की, जहां सभी लोग जाति और धर्म के भेदभाव के बिना एक साथ भोजन करते हैं। यह प्रथा आज भी सिख धर्म का अभिन्न अंग है।
गुरु नानक जी की वाणी ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ में संकलित है, जिसमें उनके 974 शब्द शामिल हैं। उन्होंने अपने जीवन के अंतिम वर्ष करतारपुर में बिताए और 1539 में अपनी ज्योति जोत में समा गए, लेकिन इससे पहले उन्होंने अपने शिष्य भाई लहना को उत्तराधिकारी बनाया, जो बाद में गुरु अंगद देव के नाम से जाने गए।
गुरु अर्जुन देव जी: सिख धर्म के प्रथम शहीद गुरु
गुरु अर्जुन देव जी, सिख धर्म के पांचवें गुरु, का जन्म 15 अप्रैल 1563 को गोइंदवाल साहिब में हुआ था। वे गुरु रामदास जी और माता भानी जी के पुत्र थे। गुरु अर्जुन देव जी ने सिख धर्म को संगठित रूप प्रदान किया और कई महत्वपूर्ण योगदान दिए। उन्होंने गुरु ग्रंथ साहिब का संकलन किया, जिसमें गुरु नानक जी सहित अन्य गुरुओं, भक्तों और संतों की वाणी को शामिल किया गया। यह ग्रंथ आज सिख धर्म का केंद्रीय धार्मिक ग्रंथ है।
गुरु अर्जुन देव जी ने अमृतसर में स्वर्ण मंदिर की नींव रखी, जो सिख धर्म का सबसे पवित्र स्थल है। उन्होंने सिख समुदाय को सामाजिक और आर्थिक रूप से मजबूत करने के लिए कई कदम उठाए। उनकी सबसे बड़ी देन थी सिख धर्म को एक व्यवस्थित ढांचा देना, जिससे यह और अधिक व्यापक और प्रभावशाली बना।
गुरु अर्जुन देव जी को सिख धर्म के प्रथम शहीद गुरु के रूप में भी जाना जाता है। मुगल सम्राट जहांगीर के शासनकाल में, धार्मिक और राजनीतिक कारणों से उन्हें 1606 में लाहौर में यातनाएं दी गईं और शहीद कर दिया गया। उनकी शहादत ने सिख समुदाय में बलिदान और धर्म के लिए दृढ़ता का भाव जागृत किया।
प्रकाश पर्व का उत्सव
आज के दिन, गुरुद्वारों में विशेष समारोह आयोजित किए जा रहे हैं। प्रभात फेरियां, कीर्तन, गुरु ग्रंथ साहिब का पाठ और लंगर इस उत्सव का मुख्य हिस्सा हैं। लोग गुरुद्वारों में एकत्र होकर गुरुओं की शिक्षाओं को याद करते हैं और उनके दिखाए मार्ग पर चलने का संकल्प लेते हैं। अमृतसर का स्वर्ण मंदिर और करतारपुर साहिब जैसे स्थानों पर लाखों श्रद्धालु एकत्र होते हैं।
गुरु नानक देव जी और गुरु अर्जुन देव जी की शिक्षाएं आज भी प्रासंगिक हैं। गुरु नानक जी ने जहां एकता और प्रेम पर जोर दिया, वहीं गुरु अर्जुन देव जी ने संगठन और बलिदान का महत्व बताया। दोनों गुरुओं ने समाज में समानता और भाईचारे का संदेश दिया, जो आज के समय में और भी महत्वपूर्ण हो गया है।
आधुनिक समय में गुरुओं की प्रासंगिकता
आज के दौर में, जब विश्व में अशांति और असमानता बढ़ रही है, गुरु नानक जी और गुरु अर्जुन जी की शिक्षाएं हमें रास्ता दिखाती हैं। गुरु नानक जी का संदेश ‘सर्वत का भला’ (सभी का कल्याण) और गुरु अर्जुन जी का बलिदान हमें समाज सेवा और सत्य के लिए खड़े होने की प्रेरणा देता है। लंगर प्रथा आज भी विश्व भर में जरूरतमंदों को भोजन प्रदान करती है, जो मानवता की सेवा का जीवंत उदाहरण है।
इस प्रकाश पर्व पर, सिख समुदाय न केवल अपने गुरुओं को याद करता है, बल्कि उनके उपदेशों को अपने जीवन में उतारने का प्रयास भी करता है। यह दिन हमें सिखाता है कि सत्य, मेहनत और सेवा ही जीवन का आधार हैं।