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मुस्लिम वक्फ बोर्ड से ज्यादा खतरनाक सिक्खों का SGPC: तीसरे भाग में जानिए सिक्खिस्तान की कहानी

नेहरू ने वादा किया था कि वो आजाद भारत में एक स्पेशल राज्य सिखों को देंगे पाकिस्तान से आए सिख देश के कौन-कौन में फैल गए और खेती-बाड़ी ना होने के कारण व्यापार में जम गए।
Pramod Shukla September 25, 2024 1 min read
special Story on SGPC

खबर4इंडिया स्पेशल

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नई दिल्लीः- पिछले दो भागों में आपने पढ़ा एसजीपीसी का गठन व हिन्दू महंतों की हत्या कर गुरूद्वारों पर कब्जा भाग-3 में महाराज रणजीत सिंह के बाद इक्का दुक्का छोटे सिख रजवाड़े थे लेकिन वो अंग्रेजो से समझौता कर राज करने लगे। गांधी के भारत में आने के बाद और 1925 में गुरूद्वारा प्रबंधक एक्ट के बनने के बाद सिख समुदाय मजबूत होता जा रहा था। अंग्रेजी सरकार में नौकरियां खासकर सेना में सिखों को आसानी से मिल जाती थी। समय बीतता गया और धीरे-धीरे देश में पूर्ण स्वराज की मांग उठने लगी और सभी लोग इसमें बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने लगे खासकर पंजाब, क्योंकि मोहम्मद अली जिन्ना ने पूर्ण स्वराज के साथ धर्म के आधार पर पाकिस्तान की मांग भी उठा दी थी। इस स्वराज की लड़ाई में चार टीमें काम कर रही थी

1. नेहरू/गांधी 

2. मोहम्मद अली जिन्ना 

3. डॉ भीमराव अम्बेडकर 

4. एसजीपीसी 

नेहरू-गांधी सेक्युलर देश के पक्ष में थे और अम्बेडकर भी इससे सहमत थे लेकिन वो पिछड़ों को स्पेशल स्टेटस/आरक्षण दिलाने के लिए लड़ रहे थे। जिन्ना पाकिस्तान चाहते थे और एसजीपीसी सिक्खिस्तान।

नहीं मिला सिक्खिस्तान, उल्टा और हुए कमजोर 

अम्बेडकर ने बाद में संविधान के जरिए अपनी मांग पूरी करा ली नेहरू गांधी का सपना भी भारत को सेक्युलर बनाकर पूरा हुआ तो वहीं दूसरी तरफ जिन्ना ने पाकिस्तान मांगा और एसजीपीसी ने खालिस्तान। धार्मिक आबादी के अनुसार जिन्ना को पाकिस्तान दिया गया क्योंकि मुस्लिम आबादी देश की कुल आबादी के चोथाई मतलब 25% थे। इसलिए जिन्ना को पाकिस्तान मिला लेकिन सिक्खिस्तान पर बात नहीं बनी क्यो सिख कुल आबादी के मात्र 1.5% ही थे इसलिए पंजाब पर सिखों का सबसे ज्यादा वर्चस्व था लेकिन फिर भी वो हिंदू और मुसलमान दोनों से कम थे तत्कालीन पंजाब में 53% मुस्लिम 30% हिंदू और 15% सिख थे।

बंटवारे के दौरान सिख बहुलता वाला पंजाब का 62% हिस्सा (सिंध-पेशावर-मुल्तान आदि )पाकिस्तान को मिल गया। बंटवारे का सबसे ज्यादा दंश सिखों को झेलना पड़ा क्योंकि हिन्दू अधिकतर पहाड़ी और हरियाणा आदि में थे। अलग देश की मांग पूरी ना होने पर विरोध शुरू हुआ तो नेहरू ने एक स्पेशल राज्य देना का भरोसा दिलाया। इस बंटवारे से सिख क्षेत्रीय जनसंख्या के हिसाब से बिल्कुल कमजोर पड गए और सिक्खिस्तान का सपना भी लगभग टूट गया क्योंकि देश सेक्युलर था तो अब धर्म के नाम पर बंटवारा बहुत मुश्किल/ना-मुमकिन था।

नेहरू ने वादा किया था कि वो आजाद भारत में एक स्पेशल राज्य सिखों को देंगे पाकिस्तान से आए सिख देश के कौन-कौन में फैल गए और खेती-बाड़ी ना होने के कारण व्यापार में जम गए। सिख बहुल इलाकों में सिखीस्तान के लिए अब भी थोड़े बहुत प्रोस्टेट होते रहते थे। जो कभी कभी दंगे और बड़ी क्षेत्रीय हिंसा का का कारण बनते थे जिसे रोकने के लिए शुरूआत में कुछ क्षेत्रों को सिखों के बहुल राज्य के लिए चुना गया जिसका नाम पटियाला एंड ईस्ट पंजाब युनियन था जिसे PEPSU भी कहते थे। लेकिन इसे पुर्ण राज्य जैसे या विषेश राज्य का दर्जा नहीं मिला।

अकाली दल की बढ़ती ताकत को देखते हुए सरकार ने इसे भंग कर दिया कुछ समय बाद भारत सरकार स्टेट रीऑर्गेनाइजेशन एक्ट 1956 को लेकर आई जिसमें भाषा के आधार पर कई राज्यों को बांटा गया।

भाषा और संस्कृति के नाम पर पंजाब की मांग

स्टेट रीऑर्गेनाइजेशन एक्ट 1956 के आने के बाद पंजाब में भी भाषा के और संस्कृति के आधार पर अलग राज्य की मांग फिर उठने लगी लेकिन सरकार ने इस पर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया। पंजाब क्षेत्र में अभी भी छोटी-मोटी झड़पे हिंदू और सिखों के बीच होती रहती थी कुछ समय बाद भाषा के आधार पर पंजाबी सुबा मूवमेंट स्टार्ट हुआ जिसमें पंजाब को एक अलग राज्य बनाने की मांग रखी गई और साथ ही गुरमुखी को वहां की ऑफिशियल लैंग्वेज का दर्जा देने का भी मुद्दा उठा।

कुछ समय बाद मास्टर ताराचंद ने इस मूवमेंट को और बड़ा किया और पंजाब सुबा मूवमेंट इतनी तेजी से बढ़ने लगा कि सरकार को इस पर रोक लगाना पड़ा। इससे रिलेटेड स्लोगंस बोलने पर भी सरकार ने प्रतिबंध लगा दिया। इसी के कुछ समय बाद शुरू हुआ इंदिरा गांधी का वह दौर जिसमें खाली स्थान और पाकिस्तान जैसे आंदोलन को कुचला जाने लगा। एसजीपीसी से निकलकर अकाली दल ने पंजाब में अपनी सरकार बनाई। अकाली दल एसजीपीसी और बहुत सारे छोटे बड़े दलों की मांग अभी भी सिक्खिस्तान को लेकर थी अभी भी लड़ाई में खालिस्तान का कोई नाम नहीं था।

पंजाब सूबा मूवमेंट मैं शामिल करीब 12000 सिक्खों को गिरफ्तार किया गया सन 1955 में पहली बार सरकार ने गोल्डन टेम्पल में सेना भेजी सन 1960 से 1965 तक लड़ाइयां चलती रही मास्टर ताराचंद ने आमरण अनशन किया साथ ही (नाओ एंड नेवर) जैसे बड़े आंदोलन हुए।साल 1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध हुआ इस युद्ध में सिखों ने बढ़ चढ़कर भाग लिया जिससे पूरे देश को सिखों की वीरता के बारे में पता लगा।

इंदिरा गांधी ने भी नरमी अपनाते हुए पंजाब की मांग को स्वीकार कर लिया उस समय पंजाब को चार हिस्सों में बांटा गया। पंजाब, हरियाणा, हिमाचल और चंडीगढ़ क्योंकि पंजाब में पंजाबी भाषी लोग थे और हरियाणा में हिंदी लेकिन चंडीगढ़ बीच में था वहां 50-50 प्रतिशत दोनों भाषाओं के लोग थे इसलिए चंडीगढ़ को दोनो राजधानी की राजधानी बनाते हुए उसे केंद्र शासित रखा गया।

अगले भाग में हम आपको बताएंगे कैसे खालिस्तान का उदय हुआ और किन कारणों से इंदिरा गांधी की हत्या हुई।

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