नई दिल्ली:- भारतीय इतिहास के पन्नों में ऐसे-ऐसे वीरों का नाम दर्ज है जिनकी शक्तियों के बारे में कल्पना करने पर वे असम्भव लगते हैं। आज के युग में रामायण और महाभारत के योद्धाओं को पाना नामुमकिन है, किन्तु कुछ सौ साल पहले के इतिहास में भी महाभारत के योद्धाओं के पुनर्जन्म की एक अनोखी कहानी मिलती है। इतिहासकारों व दरबारी कवियों के लेखो में अब भी महाभारत का जिक्र देखने को मिल जाता है। 12वीं सदी में बुदेलखंड के महोबा के दशरथपुरवा गांव में जन्मे दो भाई आल्हा-ऊदल इन दोनों भाइयों के पराक्रम को देखते हुए इन्हें युधिष्ठिर और भीम का अवतार भी कहा जाता है। आल्हा और ऊदल भाइयों की वीरगाथा आज भी बुंदेलखंड में गाई जाती है। ये दोनों बनाफर क्षत्रिय राजपूत थे जिन्होंने अपनी विरता और युद्ध कौशल से कई बार पृथ्वीराज चौहान को मत दी थी।
कर्ण अर्जुन और दुर्योधन
आल्हा काव्य खंण्ड के अनुसार राजा परमाल के दो पुत्र हुए एक का नाम ब्रम्हानंद और दुसरे का नाम धांधू था। ब्रम्हानंद तो राजकुमार थे किन्तु धांधू को यह पद नहीं मिला क्योंकि उनकी मां एक दासी थी। फिर भी धांधू ने कभी इसका दुख नहीं किया और हमेशा अपने लोगों के साथ रहा। किंतु नैनागढ़ की लड़ाई में उसने पृथ्वीराज चौहान से मित्रता कर ली जिसके बाद धांधू ने अपने भाई ब्रम्हानंद सहित आल्हा ऊदल से लड़ाई लड़ी।
धांधू था कर्ण का अवतार
आल्हा काव्य खंण्ड के अनुसार धांधू को महाभारत के कर्ण व उनके मित्र पृथ्वीराज चौहान को दुर्योधन का अवतार माना जाता है। काव्य खंण्ड के अनुसार धांधू का शरीर भी लोहे का था कवि जागनिक की कविता आल्हा खंड में इन दोनों भाइयों की लड़ी गई 52 लड़ाइयों का वर्णन किया गया है। महाभारत के अनुसार, दुर्योधन को उसके पूर्व जन्म में कलयुग का अंशावतार बताया गया है जबकि आल्हा काव्य खंण्ड में पृथ्वीराज चौहान को धांधू का साथ देने के कारण दुर्योधन का अवतार बताया गया है।
नोट:- यह जानकारी पुस्तकों/लोककथाओं व सोशल मीडिया आदि से प्राप्त है, संस्थान द्वारा इसे पूर्णरूप से सत्य होना का दावा नहीं किया जाता है!