प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा कोरोना के कोरोना के संक्रमण की खबरें आने के बाद देश को अचानक लॉकडाउन का फैसला काफी हद तक गलत था। लॉकडाउन करने से सिर्फ वही हुआ कि लोग बर्बादी का इंतजार कर रहे थे। खासकर श्रमिक वर्ग के लोगों को काफी परेशानियां उठानी पड़ी। लोग मदद ना मिलने पर पैदल ही अपने घर को निकल गए। कुछ ट्रेन के नेीचे कटकर मर गए तो कुछ तपती धूप और कुछ भूख से मर गए। इस दौरान लोगों को वह दिन देखने को मिले जब रोटी तक दो दो दिन नसीब नहीं हुई। रही सही कसर पुलिस द्वारा पूरी की जाती रही। लोगों को रोका जाता रहा हालांकि इस दौरान खाकी सराहनीय कार्य भी सरकार के सहयोग से करती रही।
अब बात मुद्दे की करते हैं। अगर सरकार लॉकडाउन करने से पहले यह घोषणा कर देती कि देश को को अगले दस दिन के बाद लॉकडाउन किया जाएगा और प्रवासी अपने अपने घर चले जाएं। तो श्रमिक अपने अपने प्रदेश निश्चित रूप से चले आते। इस समय कोरोना इस तरह से संक्रमण का खतरा नहीं था। तब इक्का दुक्का मामले सामने आ रहे थे। अगर कुछ नुकसान भी होता तो सिर्फ इतना कि कोरोना संक्रमण की जो संख्या आज होती वही संख्या 60 दिन पहले हो जाती। जी हां! ज्यादा से ज्यादा यही होता लेकिन लॉकडाउन से पहले लोगों को 10 दिन का समय देने से कम से कम लोगों को तकलीफे नहीं उठानी पड़ती।
ना श्रमिकों पर लाठियां भाजी जाती और ना ही श्रमिकों को पैदल चलना पड़ता और ना ही लोगों को भोजन, पानी के लिए तरसना पड़ता और ना ही सरकारी खजाने का नुकसान होता। यानि अचानक लॉकडाउन का फैसला करके सरकार ने पैसा, समय और एनर्जी की बर्बादी की है।
आखिरकार अब सरकार ने नियम और शर्तों के साथ ट्रेनों के संचालन को मंजूरी दे दी है। लेकिन अब कोरोना संक्रमण का खतरा पहले से कई गुना ज्यादा बढ़ गया है। आज औसतन 100 में से 4 आदमी कोरोना से संक्रमित हैं। यानि पहले से कोरोना के संक्रमण का खतरा कई गुना ज्यादा बढ़ गया है। खासकर महाराष्ट्र से निकलने वाले प्रवासियों की वजह से संक्रमण निश्चित तौर पर बढ़ेगा। आज आलम यह हो गए हैं कि जो ग्रीन जोन के जिले थे वह भी ऑरेंज जोन में चले गए हैं। अगर पहले ही घोषणा कर दी जाती और श्रमिकों को मुफ्त ही उनके घर तक पहुंचाया जाता तो निश्चित तौर पर संक्रमण इतनी तेजी से नहीं फैलता जितना अब फैलेगा। अगर फैलता भी तो जो आंकडे आज हैं वह 60 दिन पहले होते लेकिन लोग अपनों के बीच होते।
दूसरी तरफ, भारत सरकार द्वारा ट्रेनों के किराएं को राजधानी ट्रेनों के बराबर कर दिया है। ऐसे में सरकार का यह दावा भी गलत साबित हो रहा है कि वह गरीबों की सरकार है। आज जब श्रमिक वर्ग परेशान हैं तो उसकी मदद करने की बजाए उससे रेल किराए के रूप में अनैतिक रूप से भारी भरकम वसूलना किस तरह का न्याय है? आज जब श्रमिकों को एक एक रुपए के लिए मोहताज होना पड़ रहा है तो वह कैसे भारी भरकम रकम देकर ट्रेन का टिकेट बुक कराएंगे। और तो और एक और नया नियम लागू कर दिया गया है कि ई टिकेट बुकिंग करनी पड़ेगी यानि जिस बेचारे को आईआरसीटीसी की वेबासाइट चलानी या टिकट बुक करना ना आता हो वह कैसे अपने घर जाएगा। आज भी भारी संख्या में भारत में लोग निरक्षण हैं।
ऐसे में सरकार को अपनी गलतियां सुधारनी चाहिए और वाजिब किराया या फिर श्रमिक स्पेशल ट्रेनों के जरिए सभी प्रवासियों को उनके उनके गृह जनपद तक पहुंचाना चाहिए। लेकिन कोरोना वायरस के खिलाफ लड़ाई में सिर्फ आम जनता ही पिस रही है। लोगों पर एक तरफ कोरोना वायरस की मार पड़ रही है तो दूसरी तरफ महंगाई की मार। पेट्रोल, डीजल, रेल किराया ये सब तो बढ़े ही हैं अब तो शराब भी कई राज्य में 70 फीसदी तक महंगी मिल रही है। आम लोगों के पास पिसने के अलावा कोई चारा नहीं बचा है और सरकारें कोई भी मौका आम लोगों पर बोझ डालने का नहीं छोड़ रही है।
कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकनो में फिलहाल कोई सफलता नहीं दिख रही है। हालांकि, कोरोना आंकड़ों के भड़ने का कारण एक यह भी है कि सरकार द्वारा टेस्टिंग की संख्या बढ़ा दी गई है। रोजोना लाखों लोगों की टेस्टिंग की जा रही है और लगभ 4 फीसदी प्रतिदिन कोरोना को केसों में बढ़ोत्तरी आ रही है। अगर सरकार द्वारा जारी किए जा रहे टेस्टिंग के आंकड़े सही हैं तो इस हिसाब से देखा जाए तो देश की आबादी के हिसाब से लगभग 4-5 लाख कोरोना के मामले भविष्य में सामने आ सकते हैं।
खबर4इंडिया और भड़ास4नेता के फाउंडर और एडिटर इन चीफ एके शुक्ला की कलम से
एके शुक्ला लगभग 5 वर्षों से मीडिया में सक्रिय हैं और खबर4इंडिया, खबर4यूपी और भड़ास4नेता के फाउंडर और संपादक हैं। शुक्ला कई समाचार चैनलों में विभिन्न पदों पर काम कर चुके हैं। शुक्ला बेखौफ और परिणाम की चिंता किए बिना जन सरोकार से जुड़ी पत्रकारिता करते रहे हैं।
इस समाचार से जुड़े शिकायत एवं सुझाव हेतु मो. न. 9990486338 पर सम्पर्क किया जा सकता है।